इथियोपिया में 12 हजार साल बाद ज्वालामुखी फटा:राख का 15km ऊंचा गुबार उठा; 4300km दूर दिल्ली पहुंचा, एअर इंडिया की 11 उड़ानें रद्द
इथियोपिया में 12 हजार साल बाद ज्वालामुखी फटा:राख का 15km ऊंचा गुबार उठा; 4300km दूर दिल्ली पहुंचा, एअर इंडिया की 11 उड़ानें रद्द
इथियोपिया का हेली गुब्बी ज्वालामुखी 12 हजार साल बाद अचानक रविवार को फट गया। इस विस्फोट से उठने वाली राख और सल्फर डाइऑक्साइड करीब 15 किमी ऊंचाई तक पहुंच गई। यह लाल सागर पार करते हुए यमन और ओमान तक फैल गई। सोमवार रात करीब 11 बजे यह राख इथियोपिया से 4300 किमी दूर दिल्ली के आसमान पर भी छा गई। इंडिया मेट स्काई वेदर अलर्ट ने बताया कि राख का यह गुबार जोधपुर–जैसलमेर की ओर से भारत में एंट्री कर चुका है और अब उत्तर-पूर्व की तरफ बढ़ रहा है। यह बादल राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली के ऊपर फैल चुका है। इसका एक हिस्सा गुजरात को भी छू सकता है। रात में पंजाब, पश्चिमी यूपी के पहाड़ी इलाके और हिमाचल पर इसका असर दिखने की आशंका है। इसे देखते हुए एअर इंडिया ने अपनी 11 उड़ानें रद्द करने की घोषणा की है। हालांकि, एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस गुबार की ऊंचाई इतनी ज्यादा है कि आम लोगों की जिंदगी पर इसका असर काफी कम होगा। हालांकि हल्की मात्रा में राख गिरने की आशंका है। IMDB के मुताबिक, यह राख शाम 7:30 बजे तक भारत से निकल कर चीन की तरफ बढ़ जाएगी। हेली गुब्बी ज्वालामुखी फटने से जुड़ी 5 तस्वीरें... घटना में अब तक किसी की मौत नहीं हुई यह विस्फोट अफार इलाके में हेली गुब्बी ज्वालामुखी में हुआ। यह इतना पुराना और शांत ज्वालामुखी था कि आज तक इसका कोई रिकॉर्ड नहीं था। इस घटना में किसी की मौत नहीं हुई, लेकिन यमन और ओमान की सरकार ने लोगों को सावधानी बरतने को कहा है, खासकर जिन्हें सांस की तकलीफ रहती है। आसमान में फैले राख की वजह से हवाई जहाजों को भी दिक्कत हो रही है। राख की वजह से दिल्ली-जयपुर जैसे इलाकों में उड़ानों पर नजर रखी जा रही है। राख के कण इंजन को नुकसान पहुंचा सकते हैं, इस लिए इंटरनेशनल एविएशन प्रोटोकॉल के तहत सतर्कता बरती जा रही है।
DGCA ने गाइडलाइन जारी की भारत के DGCA (डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन) ने एयरलाइनों के लिए डिटेल गाइडलाइंस जारी की हैं। हालांकि भारत के ऊपर मौजूद राख बहुत ऊंचाई पर है, इसलिए टेकऑफ और लैंडिंग पर फिलहाल कोई बड़ा खतरा नहीं माना जा रहा है। DGCA ने कहा है कि अगर किसी विमान को राख के संपर्क में आने का जरा भी संदेह हो, जैसे इंजन की परफॉर्मेंस में गड़बड़ी, केबिन में धुआं या बदबू तो एयरलाइन को इसकी जानकारी तुरंत देनी होगी। अगर राख एयरपोर्ट ऑपरेशन को प्रभावित करती है, तो संबंधित एयरपोर्ट को रनवे, टैक्सीवे और एप्रन की तुरंत जांच करनी होगी। DGCA ने सभी एयरलाइंस और एयरपोर्ट को चेतावनी दी है कि वे सावधानी बरतें। ज्वालामुखी की राख के कारण अकासा एयर, इंडिगो और KLM ने कई उड़ानें रद्द की हैं। DGCA ने कहा है कि- कुछ फ्लाइट्स के रूट बदल सकते हैं मुंबई एयरपोर्ट ने यात्रियों से कहा कि वे एयरपोर्ट आने से पहले अपनी उड़ानों की जानकारी जरूर जांच लें, क्योंकि कुछ अंतरराष्ट्रीय फ्लाइट्स के रूट बदल सकते हैं। ज्वालामुखी में और विस्फोट होने की आशंका वैज्ञानिकों ने हजारों साल बाद ज्वालामुखी फटने की घटना को इस क्षेत्र के इतिहास की सबसे असाधारण घटनाओं में से एक बताया है। गल्फ न्यूज के मुताबिक विस्फोट के साथ बड़ी मात्रा में सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) भी निकली है, जिससे पर्यावरण और स्वास्थ्य पर असर को लेकर चिंता बढ़ गई है। एमिरात एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी के चेयरमैन इब्राहिम अल जरवान ने कहा कि अगर ज्वालामुखी अचानक ज्यादा SO₂ छोड़ रहा है, तो यह बताता है कि अंदर दबाव बढ़ रहा है, मैग्मा हिल रहा है और आगे और विस्फोट हो सकता है। अल जरवान ने कहा- यह घटना वैज्ञानिकों के लिए एक दुर्लभ मौका है, जिसमें वे एक ऐसे ज्वालामुखी को करीब से समझ सकते हैं, जो बहुत लंबे समय बाद जागा है। ज्वालामुखी फटने का वैज्ञानिक महत्व जानिए हेली गुब्बी, अफार रिफ्ट का हिस्सा है। यह एक ऐसा इलाका जहां धरती की टेक्टॉनिक प्लेटें लगातार खिसक रही हैं। इस क्षेत्र के दूसरे ज्वालामुखी, जैसे एर्टा एले को पहले से ही लगातार मॉनिटर किया जाता है। ऐसे में हेली गुब्बी की अचानक सक्रियता इस बात पर सवाल उठाती है कि धरती के भीतर मैग्मा में कौन से गहरे बदलाव हो रहे हैं। यह घटना अंतरराष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली और सीमा पार जारी होने वाली राख संबंधी चेतावनियों के महत्व को भी सामने लाती है। ज्वालामुखी की राख हजारों किलोमीटर दूर तक जा सकती है, इसलिए कई देशों की एजेंसियां मिलकर इसकी ट्रैकिंग कर रही हैं। शोधकर्ता अब हेली गुब्बी को भविष्य के अध्ययन के एक प्रमुख स्थल के रूप में देख रहे हैं। वे यह समझने की कोशिश करेंगे कि हजारों साल शांत रहने के बाद यह ज्वालामुखी अब क्यों सक्रिय हुआ। इस तरह के अध्ययन टेक्टॉनिक रिफ्ट वाले इलाकों में स्थित शील्ड ज्वालामुखियों के व्यवहार के बारे में नए संकेत दे सकते हैं। वैज्ञानिक जब ऐसे दुर्लभ विस्फोटों का अध्ययन करेंगे, तो उन्हें यह समझने में मदद मिलेगी कि उन ज्वालामुखियों का व्यवहार कैसा होता है जो टेक्टॉनिक रिफ्ट (जहां धरती की प्लेटें अलग हो रही होती हैं) वाले इलाकों में मौजूद हैं।
इथियोपिया का हेली गुब्बी ज्वालामुखी 12 हजार साल बाद अचानक रविवार को फट गया। इस विस्फोट से उठने वाली राख और सल्फर डाइऑक्साइड करीब 15 किमी ऊंचाई तक पहुंच गई। यह लाल सागर पार करते हुए यमन और ओमान तक फैल गई। सोमवार रात करीब 11 बजे यह राख इथियोपिया से 4300 किमी दूर दिल्ली के आसमान पर भी छा गई। इंडिया मेट स्काई वेदर अलर्ट ने बताया कि राख का यह गुबार जोधपुर–जैसलमेर की ओर से भारत में एंट्री कर चुका है और अब उत्तर-पूर्व की तरफ बढ़ रहा है। यह बादल राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली के ऊपर फैल चुका है। इसका एक हिस्सा गुजरात को भी छू सकता है। रात में पंजाब, पश्चिमी यूपी के पहाड़ी इलाके और हिमाचल पर इसका असर दिखने की आशंका है। इसे देखते हुए एअर इंडिया ने अपनी 11 उड़ानें रद्द करने की घोषणा की है। हालांकि, एक्सपर्ट्स का मानना है कि इस गुबार की ऊंचाई इतनी ज्यादा है कि आम लोगों की जिंदगी पर इसका असर काफी कम होगा। हालांकि हल्की मात्रा में राख गिरने की आशंका है। IMDB के मुताबिक, यह राख शाम 7:30 बजे तक भारत से निकल कर चीन की तरफ बढ़ जाएगी। हेली गुब्बी ज्वालामुखी फटने से जुड़ी 5 तस्वीरें... घटना में अब तक किसी की मौत नहीं हुई यह विस्फोट अफार इलाके में हेली गुब्बी ज्वालामुखी में हुआ। यह इतना पुराना और शांत ज्वालामुखी था कि आज तक इसका कोई रिकॉर्ड नहीं था। इस घटना में किसी की मौत नहीं हुई, लेकिन यमन और ओमान की सरकार ने लोगों को सावधानी बरतने को कहा है, खासकर जिन्हें सांस की तकलीफ रहती है। आसमान में फैले राख की वजह से हवाई जहाजों को भी दिक्कत हो रही है। राख की वजह से दिल्ली-जयपुर जैसे इलाकों में उड़ानों पर नजर रखी जा रही है। राख के कण इंजन को नुकसान पहुंचा सकते हैं, इस लिए इंटरनेशनल एविएशन प्रोटोकॉल के तहत सतर्कता बरती जा रही है।
DGCA ने गाइडलाइन जारी की भारत के DGCA (डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन) ने एयरलाइनों के लिए डिटेल गाइडलाइंस जारी की हैं। हालांकि भारत के ऊपर मौजूद राख बहुत ऊंचाई पर है, इसलिए टेकऑफ और लैंडिंग पर फिलहाल कोई बड़ा खतरा नहीं माना जा रहा है। DGCA ने कहा है कि अगर किसी विमान को राख के संपर्क में आने का जरा भी संदेह हो, जैसे इंजन की परफॉर्मेंस में गड़बड़ी, केबिन में धुआं या बदबू तो एयरलाइन को इसकी जानकारी तुरंत देनी होगी। अगर राख एयरपोर्ट ऑपरेशन को प्रभावित करती है, तो संबंधित एयरपोर्ट को रनवे, टैक्सीवे और एप्रन की तुरंत जांच करनी होगी। DGCA ने सभी एयरलाइंस और एयरपोर्ट को चेतावनी दी है कि वे सावधानी बरतें। ज्वालामुखी की राख के कारण अकासा एयर, इंडिगो और KLM ने कई उड़ानें रद्द की हैं। DGCA ने कहा है कि- कुछ फ्लाइट्स के रूट बदल सकते हैं मुंबई एयरपोर्ट ने यात्रियों से कहा कि वे एयरपोर्ट आने से पहले अपनी उड़ानों की जानकारी जरूर जांच लें, क्योंकि कुछ अंतरराष्ट्रीय फ्लाइट्स के रूट बदल सकते हैं। ज्वालामुखी में और विस्फोट होने की आशंका वैज्ञानिकों ने हजारों साल बाद ज्वालामुखी फटने की घटना को इस क्षेत्र के इतिहास की सबसे असाधारण घटनाओं में से एक बताया है। गल्फ न्यूज के मुताबिक विस्फोट के साथ बड़ी मात्रा में सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) भी निकली है, जिससे पर्यावरण और स्वास्थ्य पर असर को लेकर चिंता बढ़ गई है। एमिरात एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी के चेयरमैन इब्राहिम अल जरवान ने कहा कि अगर ज्वालामुखी अचानक ज्यादा SO₂ छोड़ रहा है, तो यह बताता है कि अंदर दबाव बढ़ रहा है, मैग्मा हिल रहा है और आगे और विस्फोट हो सकता है। अल जरवान ने कहा- यह घटना वैज्ञानिकों के लिए एक दुर्लभ मौका है, जिसमें वे एक ऐसे ज्वालामुखी को करीब से समझ सकते हैं, जो बहुत लंबे समय बाद जागा है। ज्वालामुखी फटने का वैज्ञानिक महत्व जानिए हेली गुब्बी, अफार रिफ्ट का हिस्सा है। यह एक ऐसा इलाका जहां धरती की टेक्टॉनिक प्लेटें लगातार खिसक रही हैं। इस क्षेत्र के दूसरे ज्वालामुखी, जैसे एर्टा एले को पहले से ही लगातार मॉनिटर किया जाता है। ऐसे में हेली गुब्बी की अचानक सक्रियता इस बात पर सवाल उठाती है कि धरती के भीतर मैग्मा में कौन से गहरे बदलाव हो रहे हैं। यह घटना अंतरराष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली और सीमा पार जारी होने वाली राख संबंधी चेतावनियों के महत्व को भी सामने लाती है। ज्वालामुखी की राख हजारों किलोमीटर दूर तक जा सकती है, इसलिए कई देशों की एजेंसियां मिलकर इसकी ट्रैकिंग कर रही हैं। शोधकर्ता अब हेली गुब्बी को भविष्य के अध्ययन के एक प्रमुख स्थल के रूप में देख रहे हैं। वे यह समझने की कोशिश करेंगे कि हजारों साल शांत रहने के बाद यह ज्वालामुखी अब क्यों सक्रिय हुआ। इस तरह के अध्ययन टेक्टॉनिक रिफ्ट वाले इलाकों में स्थित शील्ड ज्वालामुखियों के व्यवहार के बारे में नए संकेत दे सकते हैं। वैज्ञानिक जब ऐसे दुर्लभ विस्फोटों का अध्ययन करेंगे, तो उन्हें यह समझने में मदद मिलेगी कि उन ज्वालामुखियों का व्यवहार कैसा होता है जो टेक्टॉनिक रिफ्ट (जहां धरती की प्लेटें अलग हो रही होती हैं) वाले इलाकों में मौजूद हैं।